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महिला और पुरुष दोनों के पसंदीदा ब्रा का इतिहास

ब्रा एक ऐसा अंगवस्त्र है जिसका लोग सार्वजनिक रूप से नाम लेने से भी कतराते हैं, जिसे लेकर आज तक ये तय ही नहीं हो पाया कि इसके पहनने से नुकसान है या फायदा. इसका विरोध पुरुषों ने ही नहीं बल्कि खुद महिलाओं ने भी किया. ये वो वस्त्र है जिसका स्ट्रैप देखने भर से अधिकतर पुरुष या तो असहज हो जाते हैं या बेकाबू. मिला-जुला कर कहा जाए तो हम आजतक तय ही नहीं कर पाए कि ब्रा क्यों जरूरी है.

ऐसा इसलिए क्योंकि हमने कभी इसके बारे में बात करना सही नहीं समझा. इसे लेकर असहजता बढ़ती चली गई. आज के आधुनिक युग में भी कई औरतें अपनी ब्रा को तौलिए के नीचे छुपा कर सुखाती हैं. ऐसे में जरूरी है कि ब्रा के बारे में जाना जाए और इसके बारे में बात की जाए.

ब्रा के बारे में बात करते हुए दिमाग में सबसे पहला सवाल ये आता है कि ब्रा आखिर पहनी क्यों जाती है? तो इसका जवाब ये है कि ‘इसका कोई सटीक जवाब नहीं.’ ब्रा पहनने के किसी वैज्ञानिक फायदे की बात आज तक स्पष्ट नहीं हुई. जो महिलाएं इस अंगवस्त्र का इस्तेमाल करती हैं उनके लिए भी ये एक तरह से ऐसा बंधन होता है जिससे वह समय मिलते ही मुक्त होना चाहती हैं. इससे पहनने की जो वजह आम है वो है, स्तनों का सुडौल दिखना और उन्हें सपोर्ट देना. इसके अलावा कुछ रिपोर्ट्स में बताया गया है कि ब्रा रीड़ की हड्डी संबंधी समस्याओं को रोकने में सहायक होती हैं.

बात करें ब्रा के इतिहास की तो इसे 500 साल पुराना बताया जाता है. हालांकि इतने साल के सफर में इस अंगवस्त्र ने अपने कई रूप और नाम बदले. आजकल महिलाएं इसका सबसे मॉडर्न रूप इस्तेमाल करती हैं. बताया जाता है कि मिस्र की महिलाओं के बीच ब्रा का चलन सदियों से रहा है. प्राचीन मिस्र की महिलाएं चमड़े की ब्रा पहनती थीं. हालांकि इन्हें पहनना बहुत मुश्किल होता था लेकिन स्तन ढकने के लिए महिलाएं इसका इस्तेमाल करती थीं. इसके साथ ही चमड़े की बनी ब्रा बॉडी को शेप देने का काम करती थी. ग्रीक और युनानी सभ्यता के दौरान साधारण ब्रेस्ट बैंड पहने जाने की बात कही जाती है.

भारत में ब्रा के चलन का इतिहास खासा पुराना नहीं है. हालांकि यहां महिलाएं बहुत पहले से साड़ी पहनती आई हैं. पहले महिलाएं साड़ी को ही ढकने के लिए इस्तेमाल करती थीं. इसके बाद 6वीं शताब्दी के दौरान जब हर्षवर्धन काल आया तब चोली का प्रयोग शुरू हुआ. बताया जाता है कि 12वीं शताब्दी के दौरान युरोप में धातु के बने काॅर्सेट का इस्तेमाल होने लगा. कॉर्सेट का चलन 19वीं शताब्दी तक जारी रहा. इस कॉर्सेट ने भी कई रूप बदले. पहले ये चारों तरफ से धातु का बना हुआ एक वस्त्र होता था जो कमर से लेकर स्तन तक को सही साईज और शेप में रखने में मदद करता था. इसके बाद 1890 के दौरान कई देशों की महिलाओं ने कपड़े से बने कोर्सेट पहनने शुरू किए. ये दिखने में जैकेट की तरह थे.

इस अंडरगारमेंट में पीछे डोरियां दी जाती थीं, जिसे पहनते समय अच्छे से कसा जाता था. हालांकि ये कॉर्सेट कामयाब नहीं हो पाया क्योंकि यह इतना टाइट होता था कि डॉक्टरों ने वॉर्निंग दी थी कि इसके कसे होने के कारण जी घबराना, पेट में गड़बड़ी, सांस फूलने जैसी परेशानी हो सकती है. इसके बाद महिला समूहों ने इसका विरोध किया जिस कारण 1900 दशक तक इसका इस्तेमाल लगभग बंद हो गया.

बीबीसी कल्चर में छपे एक लेख के अनुसार पहली मॉडर्न ब्रा फ्रांस में बनाई गई. ब्रा नाम फ्रेंच शब्द ‘brassiere’ से लिया गया. इस फ्रेंच शब्द का अर्थ होता है, शरीर का ऊपरी हिस्सा. लाइफ पत्रिका के अनुसार 30 मई 1869 को फ्रांस की हर्मिनी कैडोल ने एक कॉर्सेट को दो टुकड़ों में काटकर अंडरगार्मेंट्स बनाए. इसे कॉर्सेलेट जॉर्ज नाम दिया गया. बाद में इसका ऊपरी हिस्सा ब्रा की तरह पहना और बेचा जाने लगा.

1915 से 20 के बीच बाजार में सेमी कप ब्रा, कप ब्रा बाजार का प्रवेश हुआ. जो कि न केवल स्तनों को सपोर्ट करते बल्कि देखने में भी उन्हें सुडौल बनाते थे. इसके बाद सन 1940 के दशक में बाजार में नये तरीके की ब्रा आई. उस समय की हालीवुड की जानी-मानी अभिनेत्रियों ने उसे पहना और बालीवुड में भी सन 1955 से 70 तक इस्तेमाल किया. इसे बुलेट ब्रा का नाम दिया गया. ये ब्रा दोनों स्तनों को दूर रखती थी.

इसके बाद 1975 में स्पोर्ट ब्रा की शुरुआत हुई. हालांकि ये स्पोर्ट्स ब्रा 25 साल तक अंडरगारमेंट की तरह ही इस्तेमाल किया जाता रहा. लेकिन 10 जुलाई 1999 को एक अप्रत्याशित घटना घटी. फिफा महिला विश्वकप में अमेरिका और चाईना के बीच एक मैच टाई हो गया. फिर खेल पेनाल्टी शुटआऊट पर पहुंचा. अमेरिका की महिला खिलाड़ी ने निर्णायक गोल करते ही अत्यधिक उत्साह में उसने अपनी टी-शर्ट उतार फेंकी और जश्न मनाने लगी. यह घटना महिला खेल के इतिहास की सबसे बड़ी घटना साबित हुई और इसके बाद से ही स्पोर्ट ब्रा अंडर गारमेंट की श्रेणी से बाहर निकल कर साधारण वस्त्र की श्रेणी में आ गई. इसके बाद महिलाएं खेल के दौरान इसका इस्तेमाल करने लगीं.

ब्रा को मशहूर करने में फैशन मैगजीन ‘Vogue’ ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई. इस मैगजीन ने 1907 में Brassiere शब्द को फेमस किया. हालांकि इसके लिए उन्हें विरोध भी झेलना पड़ा. ब्रा का विरोध करने के साथ साथ ही महिलावादी संगठनों ने इसके नुकसान के बारे में भी महिलाओं आगाह किया. 1960 के दशक में भी महिलावादी संगठनों ने ब्रा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. उनका दावा था कि ब्रा कृत्रिम पलकें, बालों को घुंघराले करने वाले कर्लर, पुरुषवादी समाज की प्रभुता और स्त्री के दमन का प्रतीक है. उनका कहना यह भी था कि इसे पहनने से महिलाएं सिर्फ सेक्स ऑब्जेक्ट बन जाती हैं. इसके साथ ही यह भी कहा गया कि इसे पहनने से ब्रेस्ट कैंसर होता है.