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अगहन मास में सूर्यदेव तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं, इस संक्रांति को वृश्चिक संक्रांति नाम से जाना जाता है। वृश्चिक संक्रांति का प्रकृति, मौसम और कृषि संबंधित कार्यों को लेकर विशेष महत्व माना जाता है। यह संक्रांति धार्मिक व्यक्तियों, वित्तीय कर्मचारियों, छात्रों व शिक्षकों के लिए विशेषकर शुभ मानी जाती है। वृश्चिक संक्रांति में सूर्यदेव को प्रसन्न करने के उपाय करने से कार्यक्षेत्र और व्यापार में सफलता प्राप्त होती है और आर्थिक समस्याओं का निदान प्राप्त होता है।

संक्रांति काल को दान-पुण्य, श्राद्ध व पितृ तर्पण का काल माना जाता है। वृश्चिक संक्रांति में किसी तीर्थ पर स्नान कर पितरों का श्राद्ध व तर्पण करना चाहिए। वृश्चिक संक्रांति पर स्नान दान का विशेष महत्व है। इस दिन दान करने से भगवान सूर्य की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

वृश्चिक संक्रांति के दिन जरूरतमंदों को वस्त्र और अनाज का दान करें। संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा करने के साथ गुड़ और तिल का भोग लगाएं। इसे प्रसाद रूप में बांटें। वृश्चिक संक्रांति के दिन गोदान को महादान माना जाता है। संक्रांति के दिन कंबल, आटा, दाल आदि का दान करें।

धातुओं का भी दान कर सकते हैं। धातुओं का दान करने से जीवन में आने वाली हर विपत्ति टल जाती है। इस दिन श्राद्ध और पितृ तर्पण का भी विशेष महत्व है। इस दिन प्रातः काल जल्दी उठकर सूर्यदेव का विधिवत पूजन करना चाहिए। लाल तेल का दीपक जलाएं। गुग्गल की धूप करें। रोली, केसर, सिंदूर आदि अर्पित करें। सूर्यदेव को लाल व पीले पुष्प अर्पित करें। गुड़ से बने हलवे का भोग लगाएं तथा रोली, हल्दी व सिंदूर मिश्रित जल से सूर्यदेव को अर्घ्य दें।