11 की उम्र में बूढ़े व्यक्ति से हुई शादी, सालों तक सहा यौ*न शोषण, जानें- Phoolan Devi कैसे बनी ‘दस्यु सुंदरी’

इन दिनों विद्युत जामवाल की एक आने वाली फिल्म को लेकर खूब चर्चाएं चल रही हैं. ये फिल्म ‘शेर सिंह राणा’  की बायोपिक बताई जा रही है जिसने ‘दस्यु सुंदरी’ फूलन देवी की हत्या की थी. फूलन देवी की जिंदगी पर कई फिल्में तो पहले ही बन चुकी हैं जिनमें उनकी ट्रैजिक कहानी दिखाई जा चुकी है. ‘दस्यु सुंदरी’ ने 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ा करके गोलियों से भून डाला था और इसी का बदला लेने के लिए शेर सिंह राणा ने फूलन को मारा था. सिर्फ यही नहीं फूलन देवी की जिंदगी से ऐसी कई कहानियां जुड़ी हुई हैं जिसे सुनकर आप अवाक् रह जाएंगे.

बताया जाता है कि एक वक्त पर फूलन देवी वो नाम थी जिसे सुनते ही बीहड़ कांप उठता था लेकिन वो हमेशा से ऐसी नहीं थी. यूपी के जालौन में एक गांव है, घूरा का पुरवा जहां पर 10 अगस्त 1963 को फूलन का जन्म हुआ था. मल्लाह परिवार में जन्मी फूलन अपने बचपन से ही गरीबी झेल रही थीं. कहते हैं कि बचपन में फूलन ने अपनी मां से एक कहानी सुनी थी कि कैसे उसके चाचा ने पूरे परिवार की जमीन हड़प ली थी. दस साल की फूलन जाकर अपने चाचा के घर के सामने बैठ गई और धरना दे दिया. उससे बात नहीं बनी तो मामला बहस तक पहुंच गया और इसी कहा-सुनी के बीच फूलन ने अपने चाचा के सिर पर ईंट दे मारी.

फूलन को एक पत्थर मारने की कीमत जिंदगी भर चुकानी पड़ी. इस घटना के बाद 50 साल उम्र के आदमी से 11 साल की फूलन का ब्याह कर दिया गया. उस आदमी ने 11 साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया. सालों तक ये बच्ची यौन शोषण की शिकार होती रही. वहीं, झेलने की हद पार हो गई तो फूलन अपने घर वापस लौट आईं. उन्हें एक बार फिर से ससुराल भेजा गया लेकिन तब तक 50 साल का पति दोबारा शादी कर चुका था. बताया जाता है कि फूलन जब मायके आईं तो 20 साल की उम्र में फूलन को अगवा कर उसका बलात्कार किया गया था.

फूलन को पुलिस पर भरोसा नहीं रहा और फिर उन्होंने खुद हथियार उठाने की ठान ली. फूलन के जीवनी पर आधारित फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में लिखा है कि वह 20 साल की उम्र में अपने एक रिश्तेदार की मदद से डाकुओं के गिरोह में शामिल हो गई थी. बताया जाता है कि फूलन ने सबसे पहले अपने पति की हत्या की थी. उधर फूलन जिस डाकू गैंग में शामिल हुई थी उस गैंग के सरदार बाबू गुज्जर की फूलन पर बुरी नजर थी. जब बाबू ने जबरदस्ती की कोशिश की तो फूलन को बचाने के लिए गैंग के एक अन्य सदस्य विक्रम मल्लाह ने बाबू गुज्जर की हत्या कर दी थी.

वहीं, बाबू गुज्जर की हत्या से ठाकुरों का डाकू गैंग बौखला गया था और ये लोग फूलन को जिम्मेदार मानते थे. साजिश हुई और प्लानिंग करके विक्रम मल्लाह को मार गिराया गया और फूलन को किडनैप कर 3 हफ्तों तक उसके साथ बलात्कार किया फिर नग्न कर उसे सड़कों पर घुमाया गया. वहीं, किसी तरह फूलन यहां से बच निकली और अपना गैंग तैयार कर वह कुछ साल बाद दोबारा बेहमई गांव लौटी. यहां पर उसने अपने साथ बलात्कार करने वाले 22 ठाकुरों को एक लाइन में खड़ा किया और गोलियों से भून डाला.

इस हत्याकांड के बाद फूलन की छवि एक खूंखार डकैत की हो गई और तब उसे ‘बैंडिट क्वीन’ का नाम दिया गया था. फिर उसके गैंग ने लूट-पाट करने, अमीरों के बच्चों को फिरौती के लिए अगवा करने जैसे क्राइम को अंजाम दिया. कई सालों बाद फूलन ने आत्मसमर्पण करने का फैसला किया. उसे पता था कि उत्तर प्रदेश पुलिस उसकी जान की दुश्मन है, इसीलिए अपनी पहली शर्त के तहत मध्यप्रदेश पुलिस के सामने ही आत्मसमर्पण करने की बात कही. फूलन ने 13 फरवरी 1983 को मध्यप्रदेश के भिंड में आत्मसमर्पण किया था.

सरेंडर करने और सजा काटने के बाद फूलन देवी राजनीति में उतरी थीं. समाजवादी पार्टी के टिकट से मिर्जापुर की सीट जीत कर वह सदन का हिस्सा बनी. उधर फूलन का अतीत एक बार फिर उसके सामने आकर खड़ा हो गया और इस बार उसका काल बन गया. 25 जुलाई 2001 को उनके आवास के सामने ही शेर सिंह राणा नामक व्यक्ति ने उसकी गोली मारकर हत्या कर दी थी.