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“गरीबों की सुनो, वो तुम्हारी सुनेगा, तुम एक पैसा दोगे, वो दस लाख देगा” बंधुओं, मीठा ज़हर का सिद्धांत तो सुना ही होगा, परंतु चलता फिरता मीठा ज़हर कभी देखा है? यदि नहीं, तो फिर आपने शाह अब्बास अली खान तनोली के बारे में नहीं सुने हैं। चकरा गए का? अगर नहीं, तो आप संजय खान (Sanjay Khan) से फिर कभी परिचित ही नहीं हुए, जो अंदर कुछ और है बाहर कुछ और।

जनवरी 1941 में बेंगलुरू में एक सम्पन्न अफ़गान परिवार के घर जन्में शाह अब्बास अली खान तनोली एक प्रसिद्ध अफ़गान पशतून परिवार से आते हैं। उनके बड़े भाई जुल्फिकार शाह अली खान स्वयं एक बहुत चर्चित अभिनेता एवं निर्देशक रहे हैं, जिन्हें फिल्म उद्योग फिरोज़ खान के नाम से बेहतर जानते हैं। जी हां, वेलकम के आरडीएक्स भाई वाले फिरोज़ खान, जिनका एक समय बॉलीवुड में अपना अलग प्रभाव चलता था।

राज कपूर की ‘आवारा’ से प्रभावित होकर शाह अब्बास ने इस उद्योग में कदम रखने का निर्णय किया। उन्होंने कुछ फिल्मों में सहायता की, परंतु इन्हें ब्रेक मिला 1964 में ‘दोस्ती’ से जहां इन्हें एक छोटी पर महत्वपूर्ण भूमिका मिली। इसके बाद इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ‘हकीकत’, ‘दस लाख’ ,’एक फूल दो माली’, ‘धुंध’, ‘नागिन’, ‘चांदी सोना’ जैसे कई सफल फिल्में इनके कलेक्शन का हिस्सा बनी, जिसमें से कुछ में इन्होंने बतौर निर्देशक भी योगदान दिया।

परंतु वो कहते हैं न, हर चमकती चीज सोना नहीं होती। संजय खान चंदन नहीं, चंदन के वृक्ष से लिपटे भुजंग थे, जिन्हें कम ही लोग पहचान पाए और जिन्होंने पहचाना, उन्होंने उसका सबसे वीभत्स रूप देखा, जैसे ज़ीनत अमान।असल में बी आर चोपड़ा की फिल्म ‘धुंध’ के जरिए इन दोनों का परिचय हुआ था। परंतु धीरे धीरे ये परिचय प्रेम में परिवर्तित होने लगा। संजय खान (Sanjay Khan) ये बात भली भांति जानते थे कि ज़ीनत अमान के साथ उनका अफेयर काफी विवाद खड़ा करेगा, क्योंकि वह पहले से ही विवाहित थे और दो बच्चों के पिता भी।

शादीशुदा संजय खान (Sanjay Khan) ने जीनत अमान से गुपचुप तरह से शादी कर ली थी। दोनों के अफेयर की खबरें फिल्म अब्दुल्लाह के सेट से आनी शुरू हुई थीं, जो 1980 में प्रदर्शित हुई थी। उस दौरान संजय और जीनत हर पार्टी में साथ दिखाई देते थे। शादीशुदा होने के बावजूद संजय जीनत के प्यार में पड़ गए थे। अब्दुल्लाह फिल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद जीनत दूसरी फिल्मों में व्यस्त हो गईं थी। इस दौरान संजय ने जीनत को फोन कर एक गाने की शूटिंग के लिए कहा लेकिन डेट्स की कमी के चलते जीनत ने मना कर दिया और संजय का पारा चढ़ गया। जीनत का ऐसा जवाब सुनने के बाद संजय ने उन्हें फोन पर खूब बुरा-भला कहा और जब जीनत उनसे मिलने पहुंची तो संजय ने उन्हें पीट दिया और इतना पीटा कि ज़ीनत का मुख पहले जैसा कभी नहीं रहा।

वे अक्सर जीनत के साथ मारपीट करते थे। 3 नवम्बर 1979 को मुंबई के होटल ताज में पार्टी के दौरान संजय खान ने जीनत की पब्लिकली जमकर पिटाई भी कर दी थी। संजय ने इतना मारा था कि उनका जबड़ा टूट गया था। ऑपरेशन के बाद उनकी जॉ लाइन तो ठीक हो गई लेकिन दाहिनी आंख खराब हो गई। जब दोनों के रिलेशन के बारे में संजय की वाइफ जरीन को पता चला तो काफी हंगामा हुआ।

परंतु कहते हैं कि कर्मों का हिसाब कभी न कभी इसी जग में होता है। संजय खान के इन पापों का लेखा जोखा अनसुना नहीं गया। अपने आप को तुर्रम खान समझने वाले संजय खान चले टीपू सुल्तान पे सीरियल बनाने। ये एक ऐसा प्रोजेक्ट था, जिससे कई लोगों ने हाथ खींचे, बड़े से बड़े फिल्मकार तक इस आक्रांता को महिमामंडित करने से पूर्व कई बार सोचते, परंतु संजय खान तो संजय खान ठहरे, निकल पड़े टीपू सुल्तान जिन्दाबाद करने और फिर एक रोज सेट पर अग्नि की वो ज्वाला भड़की कि संजय खान फिर कभी कोई नौटंकी करने योग्य नहीं बचे। बचते भी कैसे, आधे से अधिक शरीर अग्नि को भेंट कर चुके थे और काफी धन उसी शरीर को रिस्टोर करने में खर्च हो गया। फिर अपनी इज्जत को बचाने के लिए ‘द ग्रेट मराठा’ से लेकर ‘जय हनुमान’, ‘1857 क्रांति’ जैसे सीरियल बनाए, परंतु संजय खान पुनः कभी अपनी प्रतिष्ठा नहीं पा सके। सम्पूर्ण जगत के समक्ष उनका मुखौटा चीर फाड़ के फेंक दिया गया था।